दोस्तों, आज हम आपको स्वरचित ऐसी रचना लेकर आयें हैं जो आपकी हकीकत से रूबरू करायेगी और आपके अदंर के जोश के साथ – साथ अवचेतन मन को जगाने का काम भी करेगी ।
आप कविता को पूरा अवश्य पढे़ …..।
तू भी जीत का हकदार है
भविष्य खिचता जा रहा…
वर्तमान रिसता जा रहा ।
अतीत में भूतकाल है….
व्यथित में कपाल हैं ।
अनियोजित आज हैं…
विलासताओ का राज है ।
धैर्य, परिणाम की परिधि पर…
निरतंरता की डोर मर्जी पर ।
नीरसता चारों ओर हैं..
अज्ञान का तम घनघोर हैं ।
मेहनत अलसाई जा रहीं….
किश्मत आजमाई जा रहीं ।
कुण्ठित मन सघन हैं….
तठस्थ पर लगन हैं ।
एक बार तू कर प्रण..
फिर कूद जा कुरू रण ।
दिखा करके जो तू सोचता..
प्रश्न जो तुझे रोज नौचता ।
पीछे मत देख हालात को..
दृण से भगा हर बलात को ।
फिर निश्चित हार की भी हार हैं..
आखिर
तू भी जीत का हकदार हैं ।
तू भी जीत का हकदार हैं ।
हाँ तू भी जीत का हकदार हैं ।।
-विवेक पाठक
अगर आपको हमारी कविता पसंद आई हो तो अपने दोस्तों में भी शेयर करें । और हाँ हमें अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाँ कमेटं बाँक्स पर जाकर अवश्य दें ।
आप हमारा सहयोग ऐसें ही बनाये रखें । MJC टीम सदैव आपकी आभारी रहेगी ।
धन्यवाद :-
Join the Discussion!